पाठ-8
संस्कृति
प्रश्न 1: लेखक की दृष्टि मे ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर: लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई है क्योंकि इनके अर्थ बहुत विशाल है। सभी प्रकार के अर्थ इन शब्दों में सीमट जाते है। जैसे – हमारा खान-दान, रहन सहन, सोच-विचार आदि इसके विशाल अर्थ को समझना थोड़ा कठिन है इसलिए उसकी सही समझ अब तक नहीं बन पाई। समस्त परिभाषाएँ इनमें सीमत है।
प्रश्न 2: आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होगें?
उत्तर: आग की खोज बहुत बड़ी खोज इसलिए मानी जाती है क्योंकि इसके पीछे मानव कल्याण की भावना आती है और इस अविष्कार के उपरांत मनुष्य के जीवन में एक चमत्कारिक परिवर्तन आया है। इस खोज ने मनुष्य को विशाल दृष्टि दी और हमें इसके अन्य फायदे के बारे में पता चला। आज यह मनुष्य के जीवन की अहम जरूरत बन चुकी है। इस कारण इस खोज को बहुत अहमीयत दी जाती है।
इस खोज के पीछे रही प्रेरणा का मुख्य स्रोत स्वयं को शीत से बचाना रहा होगा। मानव इससे प्रभावित हुआ, और असके द्वारा अन्य अविष्कार करने लगा।
प्रश्न 3: वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर: वास्तविक अर्थो में ‘संस्कृति व्यक्ति’ उसे कहा जा सकता है जो मानवकल्याण से जुड़ा कार्य करे। जो व्यक्ति मानवीयता का उचित रूप से कल्याण करे। एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज की खोज करता है, किन्तु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से ही प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न 4: किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का अविष्कार हुआ होगा?
उत्तर: सुई-धागे का अविष्कार मानव की जरूरतों को पूरा करने के लिए हुआ। जैसे कि – कपडे सीना, फटे कपड़ों को सीना। यह खोज अपने आप को सभ्य कहलाने के लिए भी हुई होगी। इन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने योग्य सुई-धागे का अविष्कार किया होगा जो आधुनिक समय में काफी जरूरतमंद वस्तु बन गई है मानवीय जीवन के लिए।
प्रश्न 5: ‘मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।’ किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब –
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
उत्तर: विश्वयुद्ध हुए जिस कारण विश्वशांति भंग हुई और काफ़ी बरबादी भी हुई। जातियों पर लड़ाईयाँ होती है जिसमें सर्वकल्याण की भावना नहीं होती। इन दोनो प्रसंगों द्वारा मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई। इन दोनों प्रसंगों में विश्व विनाश की भावना छुपी है और मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गई।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर: संसार के मजदूरों को सुखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल माक्र्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया। सिद्धार्थ ने अपना घर केवल इसलिए त्याग दिया कि किसी तरह तृष्णा के वषीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके।
प्रश्न 6: आशय स्पष्ट कीजिए –
मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का अविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उत्तर: पाठ – संसकृति
लेखक – भदंत आनंद कौसल्यायन
भाव – जो कार्य या सोच मानव के विनाश के साथ जुड़ा हो तथा अकल्याणकारी साबित हो, वह लेखक के अनुकूल असंस्कति है। जो अविष्कार या अनुसंधान मनुष्य के विनाश का कारण बने, वह संस्कृति नही कही जा सकती क्योंकि संस्कृति का अर्थ सर्वकल्याण एवं विश्वशांति के साथ जुड़ा है न की विनाश के साथ। अतः जो अविष्कार आत्म विनाश से जुड़ा हो, वह असंस्कृति है।
प्रश्न 7: लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है? आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उत्तर: जो परिभाषा लेखक ने (सभ्यता और संस्कृति की) प्रस्तुत की है वे सभ्यता और संस्कृति के दायरे को पूर्ण नहीं करती क्योंकि वह बहुत विशाल है। उसमें समस्त परिभाशाँए सीमीत नहीं होती (नही समाती)। लेखक ने जो परिभाषा दी है- वे अनुसंधान जो मानव कल्याण के लिए किए जाते हैं, संस्कृत कहलाते है और इनको मानने वाले सभ्य। यह परिभाषा इसके दायरे को पूर्ण नहीं करती और एक सीमीत क्षेत्र तक इन्हे उचित माना जा सकता है।
प्रचलित अर्थ में सभ्यता और संस्कृति में किसी भी व्यक्ति समाज और राष्ट्र का सम्पूर्ण वातावरण – वहाँ का रहन-सहन, खान-पान, चाल चलन और सोच-विचार आते है जबकि इस परिभाषा में नहीं।
प्रश्न 8: न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर: न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कई तर्क दिए गए है न्यूटन ने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत का अविष्कार किया और वह संस्कृत मानव था। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धंतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते क्योंकि आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण से तो परिचित है ही लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों को ज्ञान प्राप्त है। जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित हो।
प्रश्न 9: निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए –
उत्तर:
1. गलत – सरल – गलत और सरल – द्वंद्व समास
2. महामानव – महान है जो मानव – कर्मधारय समास
3. हिंदु – मुसलिम – हिन्दु या मुसलिम – द्वंद्व समास
4. सप्तर्षि – सात ऋषियों का समूह – द्विग समास
5. आत्म-विनाश – आत्म (स्वयं) का विनाश – तत्पुरूश समास
6. पददलित – पद से दलित (पैरों से दालित) – तत्पुरूश समास
7. यथोचित – यथा – उचित – अव्ययीभाव समास
8. सुलोचन – सुदर हो लोचन जिसके – कार्मधारय समास
प्रश्न 10: विश्व शान्ति के लिए लेखक बदंत कौसल्यान का संस्कृत का विचार कहाँ तक उपयोग है? अपने विचार तर्क सहित दीजिए।
उत्तर: लेखक के अनुकूल संस्कृति से विश्वशांति भी बनी रहती है। क्योंकि वह कार्य विश्वकल्याण से जुड़ा होता है। अतः सबके हित में हातेा है। लोग भी आवश्यकता अनुसार प्रयत्न करते हैं ताकि वह स्थायी रह सके। हमारे अनुसार लेखक का विचार सटीक है क्योंकि संस्कृत से प्राप्त हुआ वह अविष्कार सर्वकल्याणकारी साबित होता और इस तरह वह विश्वशांति भी बनाए रखता है।
प्रश्न 11: लेखक के द्वारा दिए गए सभ्यता और संस्कृति के विचारों को आप सभ्यता और संस्कति का पूर्ण अर्थ मानते हैं?
उत्तर: लेखक के द्वारा प्रस्तुत की गई सभ्यता और संस्कृति की परिभाषाएँ एक सीमीत दायरे में समेटी गई है। उनके अनुसार वे अनुसंधान जो मानव कल्याण के लिए किए जाते हैं, संस्कृत कहलाते है और इनको मानने वाले सभ्य। ये परिभाषाएँ उनके दायरे को पूर्ण नहीं करती क्योंकि इनके अर्थ बहुत विशाल है। प्रचलित अर्थ में सभ्यता और संस्कृति में किसी भी व्यक्ति समाज और राष्ट्र का सम्पूर्ण वातावरण – उनका रहन – सहन, चाल-चलन, सोच विचार, नीतियाँ, शिष्टाचार आदि सब इसके अंतर्गत आते है। अतः इन अर्थों को सीमीत क्षेत्र तक उचित माना जा सकता है।
प्रश्न 12: ‘संस्कृति और सभ्यता एक ही सिक्के के दो पहलू है- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: संस्कृति और सभ्यता एक ही सिक्के के दो पहलु हैं क्योंकि यदि संस्कृति होगी तो सभ्यता भी होगी। अर्थात, यदि कोई कार्य सर्वकल्याण के लिए किया जाए तो उसको मानने वाले भी सब होगे। जहाँ कार्य विनाश से जुड़ा हो, वहाँ न ही संस्कृति होगी और न ही सभ्यता। यदि संस्कृत कार्य (सर्वकल्याणकारी कार्य) हो, तो सभ्यता (उसको मानते वालों) का होना स्वाभाविक है।
जो कार्य मानव कल्याण के लिए अनुसंधान के लिए जाए। संस्कृति का अनुसरण करने वाले सभ्य।
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