पाठ-7
नौबतखाने में इबादत
– यतींद्र मिश्र
प्रश्न 1: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि वह शहनाई को बखूबी बजाना जानते थे। वह अपनी कला का सम्मान करते थे इसलिए भगवान ने भी उन्हें सुरों का पक्का बनाया। जिस प्रकार शहनाई बजाई जाती है, उसी पूर्णता के साथ वह उसे बजाते। इसलिए उन्होंने इस कला में बहुत नाम कामाया।
प्रश्न 2: सुषिर-वाघों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर: फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य सुषिर-वाद्य कहलाते है। शहनाई को भी फूंककर बजाया जाता है। शहनाई ऐसा वाद्य है जिसे मेहनत के साथ फूंक कर बजाया जाता है। और सुरों को ध्यान में रखते हुए लय में बजया जाता है। इसलिए उसे ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई होगी।
प्रश्न 3: आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) ‘फटा सुर न बख्शें लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
उत्तर: पाठ – नौबतखाने में इबादत
लेखक – यतींद्र मिश्र
भाव – इस पंक्ति में खाँ जी का गाने के प्रति, सुरों के प्रति लगाव की अभिव्यक्ति हुई है। इस कला में प्रतिष्ठान होने के बावजूद उनमें किसी प्रकार का घमंड नहीं दिखता। वह हमेशा अपनी कला को सम्मान देते और ईश्वर सुरों की माँग करते। वह अपनी कला के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थ। इतने जाने-माने (कला के कारण) होने पर भी उनका व्यक्तित्व साधरण था। इन शब्दों से उनकी साधारण सोच दिखाई देती है और यह भी पता चलता है किवह दिखावेपन में विश्वास नहीं रखते। इतने पैसे होने पर भी कपड़े को सीने की बात कही। उन्हें सुरों में कमी बर्दाश न थी और अपना जीवन पूर्ण रूप से अपनी कला को समर्पित कर दिया।
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर: पाठ – नौबतखाने में इबादत
लेखक – यतींद्र मिश्र
भाव – बिस्मिल्ला खाँ जी अपनी कला से अत्यंत प्रेम करते। वह हमेशा अपनी कला का सम्मान करते। वह ईश्वर से यह प्रार्थना करते है कि वह उन्हें सुरों का पक्का बना दे और उनके गाने की प्रतिभा को और सुंदर बनाकर उसमें पूर्णता प्रदान कर दे। मेरे गायन को सुन लोग (इस कदर) आनन्द में डूब जाए और भाव विभोर हो जाए। इस तरह वह ईश्वर से सुर प्रदान करने की प्रार्थना करते है और अपनी कला में पूर्णता लाना चाहते है।
प्रश्न 4: काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ जी को काशी में कई परिवर्तन दिखाए देते है जो उन्हें व्यथित करते थे। अब उन्हें कचौड़ी के खोमचे देखने को नहीं मिलते और उनकी कमी खलती है। काशी में शिष्टाचार की कमी भी उन्हें लगने लगी थी। पहले सब एक-दूसरे को दुआ-सलाम किया करते थे परंतु आज काफी बदलाव आ गया है। आज लोगों की मानसिकता (सोच) में काफी परिवर्तन आ गया है। अपने आप को श्रेष्ठ समझा जाता है। स्वयं प्रशंसा कते है लोग और किसी के बारे में अच्छा बोलने के मामले में बेहद कंजूस होते जा रहे हैं। लोगों में स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अपने कामों के लिए चापलूसी करते है। प्रशंसा जहाँ जरूरी है वहीं करनी चाहिए। बढ़ते प्रदूषण के कारण गंगा नहीं रही (वैसी पवित्र न रही) और काशी नहीं रहा।
प्रश्न 5: पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि –
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ ने जाति के भेद-भाव में कभी विश्वास नहीं रखा। मुस्लिम होने के साथ-साथ वह हिन्दु धर्म को भी उतना ही सम्मान देते थे। विश्वनाथ मंदिर के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी और उस मंदिर को वह प्रणाम करते। खाते समय वह मंदिर के और बैठते। वह पूरी तन्मयता के साथ अपनी कला का सम्मान करते और ईश्वर की आराधना करते। उन्होंने हिंदु एवं मुस्लिम संस्कृति में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखा और ईश्वर को एक माना और उन्हें सुर प्रदान करने की प्रार्थना करते। इस प्रकार वह मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ पूर्ण श्रद्ध और तन्मयता के साथ अपनी कला को पूजते और दिखावे में विश्वास नहीं रखते। शान पर ध्यान नहीं देते और किसी प्रकार के भेद भाव नहीं करने में विश्वास रखते। वह हिन्दु और मुस्लिम धर्म में समान रूप से श्रद्धा का भाव रखते। गायन की शुरूआत औरते से सीखने से किया। नमाज और शहनाई को समान रूप से पूजते थे। अपनी कला के साथ धर्म का भी पूर्णता से पालन करते। इस (इन गुणों के) आधार पर कहा जा सकता है कि वह एक सच्चे इनसान थे।
प्रश्न 6: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ जी की निम्न खूबियों से हम प्रभावित हुए –
1. सरलता – वह सादगी से जीते और अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होने अपनी कला को समर्पित कर दिया। कभी दिखावे में विश्वास नहीं किया। सादगी से जीवन व्यतीत किया।
2. शहनाई के प्रति लगाव – उनकी अपनी कला के प्रति अटूट श्रद्धा थी और वह उसका सम्मान करते थे।
3. जतियों में भेद-भाव नहीं रखा – वह सभी धर्मों के प्रति श्रद्धा रखता। जितना हिंदु धर्म के प्रति उनका श्रद्धा का भाव था उतना ही वह मुस्लिम धर्म का भी पालन करते। वह इनसानियत की सबसे बड़ी मिसाल थे।
4. ज्ञान का सम्मान – वह मानते थे कि जहाँ से ज्ञान मिला, वहाँ से प्राप्त करते की कोशिश करनी चाहिए।
प्रश्न 7: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: ‘नौहा’ वह ध्वनि है जो शौक में बजाई जाती है। बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम भी बनाते थे और शहनाइ भी बजाते थे। वह हर कार्य का समान श्रद्धा से देखते थे। अपने धर्म का भी पूर्ण रूप से पालन करते और कला को भी पूजते थे।
प्रश्न 8: बिस्मिल्ला खाँ कला के अनत्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला से अटूट प्रेम रखते, हमेशा ईश्वर से पक्के सुर पाने की प्रार्थना करते और अपना सम्पूर्ण जीवन शहनाई को अर्पित कर दिया। रयाज करने और भगवना की अराधना क रवह शहनाई बजाने को सम्मान देते। कला के साथ साथ वह अपने शौक को पूरा भी करते। उनका मस्त मिज़ाज़ व्यक्तित्व था। अपनी कला को बहुत सम्मान देते। ईश्वर से संगीत में पूर्णता पाने की प्रार्थना करते और चाहते की उनके सुरों को सुन लोग अभिभूत हो उठे। इतना जाने माने होने पर भी उनमें घमंड नहीं था। अपनी कला को पूजते और तन्मयता के साथ शहनाई बजाते पर ध्यान देते। 80 वर्ष की उम्र में भी उनकी साधना चलती रही। सही मायने में वह कला के अनन्य उपासक थे।
प्रश्न 9: निम्नलिखित मिश्र वाक्यों में उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए –
उत्तर:
(क) यह जरूर है कि शहनाई और डूमराँव एक दूसरे के लिए उपयोगी है। यह जरूर है (संज्ञा आश्रित उपवाक्य) कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी है (प्रधान उपवाक्य)।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है (प्रधान उपवाक्य)। जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है विशेषण फूंका जाता है (विशेषण आश्रित उपवाक्य)।
(ग) रीड नटकर से बनाई जाती है (प्रधान उपवाक्य) जो डुमराँव में मुख्यत प्रधान उपवाक्य सोने नदी के किनारों पर पाई जाती है (विशेषण आश्रित उपवक्य)।
(घ) उनको यकीन है (प्रधान उपवाक्य) कभी खुदा यूँ ही उनपर मेहरबान होगा (क्रिया विशेषण आश्रित उपवाक्य)।
(ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान (प्रधान उपवाक्य)। पूरे जंगल में उसे वरदान को खोजता है (संज्ञा आश्रित उपवाक्य)। जिसकी गमक उसी में समाई है (विशेषण आश्रित उपवाक्य)।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमे यही है (प्रधान उपवाक्य) कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता एकाधिकार से सीखने की जिजीविशा को अपने भीतर जिंदा रखा (संज्ञा उपवाक्य)।
प्रश्न 10: निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए।
उत्तर: (क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद है।
– जो बालसुलभ हँसी है उसमें कई यादे बंद है।
(ख) काशी ने संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
– काशी में जो संगीत आयोजन है उसकी एक प्राचीन एवं अद्भुत परपंरा है।
(ग) धत! प्गली ई भारतरत्न हमको शहनाईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
– जो भारतरत्न हमको शहनाईया पे मिला वह लुमिया पे ना ही।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों का एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
– जो काशी का नायाब हीरा है वह हमेशा दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
प्रश्न 11: इस शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 1) संक्षिप्तता – किसी भी शीर्षक का संक्षिप्त होना उसकी विशेषता होती है। यह शीर्षक (नौबतखाने मे इबादत) तीन शब्दों का शीर्षक है, अतः संक्ष्पिप्त है।
2) विषय वस्तु से संबंधित – किसी भी शीर्षक का विषय वस्तु से सम्बंधित होना, उसकी विशेषता होती है। यहाँ महान और मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के बारे में बताया है। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी कला को समर्पित किया। इस आधार पर यह शीर्षक उचित है।
3) जिज्ञासा – किसी भी शीर्षक में जिज्ञासा होना उसकी विशेषता होती है। यह शीर्षक जिज्ञासापूर्ण क्योंकि तरह-तरह वाद्यो को पूजनीय बताते हुए निबन्ध रचा गया है। इस आधार पर यह शीर्षक उचित है।
अतः यह शीर्षक उचित, सटीक, यथार्थ, सुंदर, प्रतीकात्मक, जिज्ञासापूर्ण है।
प्रश्न 12: शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 1. संक्ष्प्तिता – किसी भी शीर्षक का संक्षिप्त होना उसकी विशेषता होती है। यह शीर्षक तीन शब्दों का है। अतः संक्षिप्त है।
2. विषय वस्तु से संबंधित – किसी भी शीर्षक का विषय वस्तु से संबंधित होतन उसकी विशेषता होती है। कर्म ही पूजा है इस भाव को जागरूक किया है क्योंकि यहाँ पर बिस्मिल्ला खाँ के जीवन की घटनाओं और उनके कर्म को बताने वाला शीर्षक है। यहाँ पर महान शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के बारे में बताया है। इस आधार पर यह शीर्षक उचित है।
3. जिज्ञासा – शीर्षक में जिज्ञासा होना उसकी विशेषता होती है। किसी विशिष्ट व्यक्तित्व के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है जो कि रोचक बनाता है। इस आधार पर यह शीर्षक उचित है।
अतः यह शीर्षक उचित, सटीक, यथार्थ, जिज्ञासापूर्ण, प्रतीकात्मक और सुंदर है।
प्रश्न 13: पेज 121 पंक्ति के आधार पर उनके व्यक्तित्व का चित्रण कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति के आधार पर बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र की निम्न विशेषताएँ पता चलती हैं-
1. उनका सुर के प्रति अत्यंत लगाव था। अपनी कला के प्रति वह समर्पित और उसका सम्मान भी करते थे।
2. उनका साधारण व्यक्तित्व था। वह सरलतापूर्वक रूप से जिंदगी व्यतीत करते और अपनी कला को समर्पित रहते।
3. कर्म ही पूजा है। वह कला का सम्मान करते और उसके प्रति अटूट श्रद्धा रखते। अराधना करते समय वह ईश्वर से केवल अच्छे सुरों को प्रदान करते की प्रार्थना करते थे।
4. दिखावें में विश्वास नहीं था – वह दिखावटीपन से दूर रहते और सरलता पूर्वक जीवन व्यतीस (बसर) करते और अपने वादन को ध्यान देते।
प्रश्न 14: रीड़ कहाँ पाई जाती है और इसका बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से क्या संबंध है?
उत्तर: शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूका जाता है। रीड, नरकर (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजाता है।
प्रश्न 15: सुषिर वाद्य किन्हें कहा जाता है? बिस्मिल्ला खाँ को इस वाद्य का शहनशाह क्यों माना जाता है?
उत्तर: फूंक से बजाए जाने वाले वाद्य सुषिर वाद्य कहलाते है। शहनाई को भी फूंककर बजाया जाता है (सुषिर वाद्य)। बिस्मिल्ला खाँ इस वादन को बखूबी बजाते थे। इस कला में वह माहिर थे और अपनी कला को समर्पित थे। इसलिए उन्हें शहनाई सुषिर वाद्यों का शहनशाह कहा जाता था।
प्रश्न 16: उनके जीवन में किन-किन के व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर उनके मामा, रसुलन बाई, नाना, बतुलन बाई का प्रभाव पड़ा। उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी। संगीत के प्रति लगाव उनके द्वारा बैठा। उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आशक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर प्राप्त हुई।
प्रश्न 17: बिसमिल्ला खाँ के जीवन से हम हिंदु-मुस्लिम संस्कृति को किस रूप से समझते है?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ ने अपने जीवन में कभी किसी धर्म या जाति में भेद-भाव करना उचित नहीं माना। वह केवल ईश्वर की अराधना करना जानते चाहे वह किसी भी रूप में हो। उनकी हिंदु एवं मु
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