सवैया

-देव

पाँयनि नूपुर मंजु………………………………………………………………‘देव’ सहाई।।

भाव-इन पंक्तियो में कवि ‘देव’ ने कृष्ण के आभूषणों का सौंदर्य प्रकट किया है। वह कहते है कि कृष्ण ने पैरो में नूपुर पहने है (घुंघरू) जो की मधुर और सुंदर रूप् से बज रहे हैं और उनकी कमर में करधनी की घुंघरू की ध्वनि मधुर बज रही है। उनका रंग साँवला है और उनके शरीर पर पीले वस्त्र बहुत शोभायमान हो रहे है। गले में वन के फूलों की माला उनके वक्षस्थल में शोभायमान है। माथे पर मुकुट है और उनकी बड़ी-बड़ी आँखे सुंदर है। चन्द्रमा रूपी मुख पर मंद हंसी ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे चंद्रमा की चाँदनी हो।

कृष्ण संसार रूपी मंदिर के दीपक के समान है अर्थात वह समस्त संसार का मार्गदर्शन करवाते है। यह सुंदर दीपक समस्त संसार को मार्गदर्शन दिखाने वाले है। कवि कहते है कि तुम ब्रज के सबसे सुंदर दुल्हे हो और तुम सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हो।

इस तरह कवि ने सौंदर्य चित्रण के साथ-साथ अपने भक्ति भाव को भी दर्शाया है।

प्रश्न 1.: कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हे संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?

उत्तर: कवि ने ‘श्रीब्रजदुलहा’ कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है क्योंकि वह ही ब्रज के सबसे ज्यादा बुद्धिमान, सबसे सुंदर और सबका मार्गदर्शन कराने वाले है। कवि ने कृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि वह सबका मार्गदर्शन कराने वाले है।

प्रश्न 2.: पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?

उत्तर: रूपक अलंकार ‘जग-मंदिर-दीपक’ (संसार रूपी मंदिर के दीपक)

मंजु बजै कटि किंकिनि कै-‘क’ वर्ण की आवृत्ति (अनुप्रास अलंकार)

प्रश्न 3.: निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

पाँयनि नूपुर ……………………………………………… बनमाल सुहाई।

भाव – देव ने इन पंक्तियों में कृष्ण के सौंदर्य और आभूषणों का चित्रण किया है।

काव्य सौंदर्य – ‘यह ब्रज भाषा में लिखा गया सवैया है।

मधुराई और सुहाई लयात्मकता प्रकट करते है।

किटि किंकिनि है – ‘क’ वर्ण की आवृति से अनुप्रास अलंकार है।

हिय (‘ह’ वर्ण) और हुलैसे $ पट (‘प’ वर्ण)पीत और यह समासिक पद भी है।

पीले रंग के वस्त्र बताया है और यहाँ कर्मधरय समास की आवृत्ति है। वन के फूलो की माला – यहाँ विशेषता बताई है तो विशेषण का प्रयोग किया गया है।

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