संगतकार
-मंगलेश डबराल
इस कविता में कवि मंगलेश डबराल ने गायन में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्व को प्रदर्शित किया है। इन व्यक्तियों (सहायकों) के बिना कोई भी कार्य पूर्णता से सम्पन्न नहीं हो सकता। इन कलाकारों का विशेष महत्व होता है। इनके बिना कार्य की सफलता अविश्वसनीय है।
इन पंक्तियों में कवि बताते है कि मुख्य गायक भारी और चट्टान के समान स्वर लगाता है। वह इनता बड़ा प्रयत्न/अभ्यास करता है। उसकी आवाज अच्छी है परंतु काँपती हुई है। उसमें दृढ़ता एवं अभ्यास की कमी है। कवि यह अंदाजा लगाता है कि यह आवाज मुख्य गायक के छोटे भाई की होगी या फिर कोई शिष्य होगा या फिर पैदल चलकर आया दूर का कोई रिश्तेदार होगा। यहाँ पर कवि यह प्रदर्शित करते है कि शायद वह रिश्तेदार गरीब होगा। इसलिए अपनी कला/प्रतिभा को प्रस्तुत करने आया होगा। कवि यह बताना चाहता है कि अपने भाई को कला का ज्ञान बाँटना, रिश्तेदार या शिष्य को सीखाना एक प्राचीन परंपरा है। यह आधुनिक नहीं है बल्कि प्राचिन काल से चलती आ रही है। जब हमें किसी विषय का विशिष्ट ज्ञान होता है, वहाँ भटकने की आशा होती है। मुख्य गायक कलाकार भी तालो के जंगल में भटकता जाता है, तब संगतकार अपनी आवाज की तान छेड़ उसे हकीकत में वापिस लाता है। ज्ञान में सुरों में डूबने पर वह ही उसे वर्तमान और यथार्थ महसूस करवाता है। मुख्य गायक स्थायी पंक्तियों को छोड़ अयंत्र गायन में डूब जाता है तब संगतकार स्थायी पंक्तियों को गाकर उसे वर्तमान में लाता है। मुख्य कलाकार नौसिखिए के समान होता है। अक्सर होता है कि महमान कलाकार अपने कार्य करते समय हकीकत भूल जाता है, तब संगतकार उसे यथार्थ से परिचित करवाता है, बचमन याद दिलाता है। मुख्य कलाकार (गायक) आवाज का असरोह करते समय जब उसकी आवाज बैठने लगती है, काँपने लगती है तब संगतकार स्वयं गाकर माहौल को सही रखता है और उसी स्वर का प्रयोग कर जो जरूरत हो, वह माहौल परिवर्तित होने से बचाता है। वह कभी-कभी यूँ ही गाने लगता है, यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है। यह महसूस करवाने के लिए कि वह उसके साथ है और अकेलापरन का अहसास नहीं होने देता। यह जरूरी नहीं हक कोई राग एक बार गाया जाए क्योंकि हम उसकी पूनावृत्ति अपने जोश के साथ कर सकते है। वह मुख्य कलाकाक की सहायता करता है पर वह हुनर में कार्य में निपूर्ण नहीं है। वह कोशिश करता है उसका साथ देने की औरी उसी के सहारे मुख्य कलाकार अपना कार्य पूर्ण रूप् से करता है। इसे उसकी मनुष्यता समझ जाना चाहिए, कमजोरी नहीं। वह ऊँचा नही उठ पाता क्योंकि वह स्वयं को महत्व नहीं देता। वह ही प्रस्तुती अच्छा बनानो का प्रयास करता है। यह उसका बड़प्पन है, अहसान है, गौरव है जिसे हमें नतमस्तक करना चाहिए वह ही मुख्य कलाकार की सहायता कर उनकी सफलता का कारन बनते है।
प्रश्न 1.: संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्ति की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर: संगतकार कविता के माध्यम से कवि मंगलेश डबराल उन लोगों की ओर संकेत करना चाह रहे है जो मुख्य कलाकार तो नहीं होते परंतु मुख्य कलाकार से कम भी नहीं होते क्योंकि वे मुख्य कलाकार के बहुत बड़े सहयोगी होते है। उनका नाम नहीं होता, यश नहीं होता पर ये मुख्य कलाकार के सहायक होते है जिनके बिना उनकी विजय अविश्वसनीय (नामुमकीन) है।
प्रश्न 2.: संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर: संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा लगभग हर कला क्षेत्र में दिखाई देते है जैसे कि नृत्य, गायन, वादन, पेंटिंग, कम्प्यूटर स्ट्रीम आदि। संगतकार (संग देने वाले व्यक्ति) लगभग हर कला क्षेत्र में देखे जाते है। कोई भी व्यवसाय हो।
प्रश्न 3.: संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
(या)
मुख्य गायकों का ढाढस बढ़ाने के लिए क्या क्या करती है और क्यों?
उत्तर: संगतकार निम्न रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते है –
1. जब मुख्य गायक, गायिका की साँस टूटने लगती है त बवह ऊँचे स्वर का अवरोह करता है।
2. जब मुख्य कलाकार का तारसप्तक में उसका गला बैठने लगता है।
3. उसके गायन में डूबने पर उसे यथार्थ की पहचान करते समय वह उसका साथ देते है और माहौल परिवर्तित होने से बचाता है।
4. कभी – कभी मुख्य कलाकार का साथ देने के लिए ताकि उसे कभी अकेलापन महसूस न हो।
इस तरह वह मुख्य कलाकार का साथ देते है। और उनकी जीत में उनका बहुत बड़ा सहयोग होता है।
प्रश्न 4.: भाव स्पष्ट कीजिए –
और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं, उसे मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर: कविता – संगतकार
कवि – मंगलेश डबराल
भाव – इन पंक्तियों में कवि ने संगतकार की मनुष्यता को दर्शाया है। वह केवल मुख्य कलाकार का सहायक नहीं बल्कि एक अच्छा व्यक्ति भी है। उसकी स्वयं कोई पहचान, गौरव नहीं परंतु दूसरों की सहायता क रवह बहुत ही विषाल कार्य कर रहा है। वह अपना स्वर ऊँचा नहीं उठाता, पर इसे उसकी कमजारी नहीं बल्कि मानवता समझी जानी चाहिए। वह मुख्य कलाकार की प्रस्तुती का अच्छा बनाने का प्रयास करता है। इसमें उसका बड़प्पन, गौरव छिपा है जिसे हमें नतमस्तक करना चाहिए। वह मुख्य कलाकार की सफलता का कारन बनते हैं।
प्रश्न 5.: किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरहे से अपना योगदान देते है। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: कोई भी कार्य क्षेत्र हो पर अकेला व्यक्ति कार्य सम्पूर्ण नहीं कर सकता। अधितम कला क्षेत्र में लोगों के सहयोग से ही मुख्य कलाकार सफलता प्राप्त करता है।
दुकान के काम में अनेक लोग कार्य करते है। दुकानदार की सहायता के लिए आवश्य ही एक नौकर होता है। वह कला का सहयोग देता है। दुकान की प्रसिद्धि केवल मालिक के हाथ में नहीं होती बल्कि उसके साथ काम करने वालों की इसमें अहम भूमिका होती है।
प्रश्न 6.: कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब मुख्य गायक/गायिका गायन के समय ऊँचे सुरों का अवरोह करता है, तो उसकी साँस टूटने लगती है एवं सुर बिखरने लगते है। ऐसे समय उस गायन का जो लेागों पर प्रभाव होता है, वह खत्म (समाप्त) होने की कागार पर होता है, ऐसे में संगतकार अपना साथ देकर स्थिति को संभाल लनेता है और माहौल परिवर्तित होने से बचा लेता है। इस तरह पता चलता है कि वह मुख्य कलाकार न होते हुए भी उससे कम नहीं होता क्योंकि मुख्य कलाकार की सफलता में उसका महत्वपूर्ण साथ होता है।
प्रश्न 7.: सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खडाता है तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते है?
उत्तर: कला क्षेत्र में मुख्य कलाकार की सफलता में संगतकार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसके बिना उसकी विजय मूमकीन नहीं है। उसके सहयोग के सहारे ही वह अपनी थोड़ी (छोटी-मोटी) भूल को ढ़क लेता है। जब संगतकार मुख्य कलाकार की सहायता करता है तो उसका बड़प्पन प्रदर्शित होता है। अपनी पहचान की फिक्र करे बिना वह दूसरों के गौरव बनाने में अपना सहयोग देता है। वह मुख्य कलाकार के साथ रहकर उसे कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देता है। इस प्रकार मुख्य कलाकार सफलता प्राप्त करता है, उनके सहयोग के सहारे। विजय में उनकी अजम भूमिका होती है।
प्रश्न 8.: कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारो का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाएँ-
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगें?
उत्तर: (क) यदि हमारे नृत्य के समारो में हमारा सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाएँ, तो हमें अपने साथी की कमी महसूस होगी, अकेलेपन का अहसास होगा और सरल रूप से कार्यक्रम खत्म करना थोड़ा कठिन प्रतीत होगा क्योंकि हमारी मुश्किल मोड़ पर सहायता करने वाला मौजूद नहीं होगा।
(ख) उस कार्यक्रम को सरलता से निकालने के लिए कुछ मनोरंजक माहौल बनाने का प्रयास करेंगें। कोई और कार्यक्रम डालकर स्थिति संभालने की कोशिश करेंगें। हँसमुख महौल बनाने के प्रयत्न और कार्यक्रम रोचक बनाने की कोशिश करेंगें।
प्रश्न 9.: किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते?
उत्तर: संगतकार, मुख्य कलाकाक को संगत देने का कार्य करते है। पर वह मुख्य स्थान प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि –
– उन्हें मुख्य भूमिका की कमी होती है।
– आत्मविश्वास की कमी होती है।
– एक प्रकार की झिझक रहती है, वह कार्यक्रम व्यक्गित रूप से नहीं कर पाता इसलिए उसका मुख्य स्थान प्राप्त करने में बाधा आती है।
प्रश्न 10.: (क) गायक को ‘जटिल तानों के जंगल में’ हाने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: इससे कवि यह व्यक्त करना चाहते है कि गायक अपने सुरों एवं गायन की गहराई में डूब जाता है और इस प्रकार यथार्थ को भूल जाता है, ख्यालों में खो जाता है। जब किसी विषय का विशिष्ट ज्ञान हो, वहाँ भटकने की आशा होती है। ज्ञान में सुरों में गायक डूब जाता है और सब भूल जाता है। कठिन संगीत में स्वर का विस्तार करते समय गायक सब भूल जाता है।
(ख) ‘अनहद’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर: कवि कहना चाहता है कि जब मुख्य गायक अपने सुरों में भटक जाता है तब वह सभी हदों को पार कर देता है। इस कदर वह अपने गायन में डूब जाता है कि सभी सीमाओं को लाँघ देता है और ख्यालों में खो जाता है।
(ग) संगतकार गायक कलाकार को नौसिखिए की तरह याद क्यों दिलाता है?
उत्तर: जब व्यक्ति को किसी विषय में विशिष्ट ज्ञान हो, तो वहाँ भटकने की आशा होती है। गायक कलाकार भी अपनी कला में इस कदर घूम जाता है कि यथार्थ भी भूल जाता है और सभी हदों को पार कर देता है। ऐसे समय में संगतकार गाकर अपना सहयोग देता है और मुख्य कलाकार को वर्तमान, सत्य से परिचित करवाता है। वह उसे उसका बचपन भी याद दिलाता है और वह समय भी जब उसने गायन सीखना शुरू किया था। सभी यादें ताजा कर देता है और यथार्थ में लाता है। इसलिए संगतकार गायक कलाकार को नौसिखिए (सीखने की उम्र) की तरह याद दिलाता है।
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