पद

-सूरदास

(1)

ऊधौ, तुम हौ……………………………………………….गुर चाँदी ज्यौं पागी।।

भाव – इद पंक्तियों में गोपिकाएं उद्वव से कहती हैं कि तुम बहुत ही भाग्यशाली हो। व्यंग्य करती हैं तुम कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम और स्नेह से वंचित हो। तुम कमल के पत्ते के समान हो जो रहता तो जल के भीतर है पर फिर भी जल से अछूता रहता है (डूबा नहीं होता)। जिस तरह गागर को पानी में डूबोया जाता है (तेल लगे होने पर) उसी तरह आप भी निर्गुण ब्रह्म रूपी तेल के कारण कृष्ण के प्रेम में डूबे हुए नहीं हो। तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नहीं डुबोए अर्थात् प्रेम का स्पर्श नहीं लिया। तुम कैसे व्यक्ति हो, जो कि कृष्ण के रूप सौंदर्य पर भी मुग्ध (मोहित नहीं हुए)। तुम तो बहुत विद्वान हो, निर्गुण भ्रम को मानने वाले हो, इसलिए कृष्ण के प्रेम में नही रंगे (सौंदर्य पर मुग्ध न हुए), लेकिन हम तो भोली-भाली गोपिकाएँ हैं। हम तो उनके प्रेम में इतने लीन है जैसे गुड़ में चीटियाँ चिपकी होती हैं।

प्रश्न 1.: गोपिकाओं ने उद्वव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है?

उत्तर: इसमें व्यंग्य छुपा है। जिस प्रकार एक प्यासा कुँए पर जाके वापिस प्यासा ही लौट आए उसी तरह उद्वव कृष्ण के पास रहते हुए भी उनके प्रेम और स्नेह को पहचान नहीं पाए (वंचित रहे)।

प्रश्न 2.: उन्होंने कृष्ण और उद्वव के संबंधों को किस प्रकार बताया है?

उत्तर: गोपिकाओं ने कृष्ण और उद्वव का सम्बन्ध कमल के पत्ते की तरह बताया है जो कि पानी के भीतर होता है फिर भी उसमें डूबा नहीं होता। उस गागर की तरह बताया है (तेल लगे होने पर) जिसमें कोई रस (पानी) नहीं होता, उसी प्रकार वह निर्गण रूप् ब्रह्म रूपी तेल के कारण कृष्ण के प्रेम में डूबे नहीं हुए।

प्रश्न 3.: प्रीति-नदी मैं पाँऊ न बौरयौ………………………….रूप पायगी।

का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति द्वारा गोपिकाएँ उद्वव को कहती है कि तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नहीं डुबोए अर्थात प्रेम का स्पर्श नहीं किया। तुम कैसे व्यक्ति हो, जो कि कृष्ण के रूपा सौंदर्य पर भी मुग्ध (मोहित) नहीं हुए।

प्रश्न 4.: गोपिकाओं ने गुण और चीटियों का उदारहण किस के लिए और क्यों दिया? (किस प्रकार अपना प्रेम अभिव्यक्त करती हैं।)

उत्तर: गोपिकाओं ने गुड़ और चिटियों के उदाहरण से अपना कृष्ण के प्रति अंधा प्रेम व्यक्त किया है। जिस प्रकार चीटियाँ गुड में चिपकी रहती हैं, उसी प्रकार वे भी कृष्ण के प्रेम में लीन है।

(2)

मन की मन ही……………………………………………….न लाही।।

अर्थ – इन पंक्तियों में गोपिकाएँ कहती है कि उनके मन में हजारों बातें थी जैसे कि वे सोचती थी कि कृष्ण उनके बारे में क्या बात करते है। संदेश देना चाहती थी परंतु उनके लिए अनुकूल पात्र नहीं थे (उचित पात्र नहीं थे)।

इतना समय जो निकला-कष्ट का समय, वदना का समय, इंतजार में निकला, तो हमें यह संदेश (निर्गुण ब्रहम की उपासना) को हम कैसे माने। जो हमारे कष्ट थे, विरह था, अब वो अब जम चुका है। (वह अब नही रहा) चाहती तो थी कि कृष्ण के बारे में सारी बाते बोलूं पर तुम्हारी बाते सुनकर मैं क्या बोलती बल्कि मेरा रोम-रोम कृष्ण को पुकारता है। अब तो रोम-रोम कन्हैया को पुकार रहा है तो अब सब पहचान गए कि हम कृष्ण को कितना प्रेम करते हैं। अब कोई मर्यादाएँ या सीमाएँ नहीं रही है। अब तुमसे क्या कहूँ। अब तो लोग देखते ही कह सकते है कि हम कृष्ण से कितना प्रेम करते हैं। अब मर्यादाओं का उल्लंघन हो गया है और वे खंडित हो गई हैं। तुम्हें अब कैसे बताऊँ क्योंकि तुम बताने योग्य नहीं हो।

प्रश्न: ‘मन ही मन माँझ रही’ – का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति में दुबारा गोपिकाएँ कहना चाहती हैं कि उनके मन में जो भी बातें थी, कृष्ण के लिए संदेश थे, वे सारे मन में ही रह गए क्योंकि उद्वव उनके लिए एक अनुकूल पात्र संदेश देने के लिए नहीं है।

(3)

हमारैं हरि हारिल……………………………………………….मन चकरी।।

अर्थ – जिस तरह एक हरिल पक्षी एक लकड़ी के टुकड़े को अपने जीवन का सहारा मानता है, उसी तरह हमारे जीवन का सहारा ही हरि (कृष्ण) हरिल की लकड़ी समान जीने का अधार है। नंद के नदंन कृष्ण को हमने भी अपने हृदय में बसाकर कसकार पकड़ा हुआ है। हमने उन्हें अपने मन, क्रम, वचन से दृढ़ता से पकड़ रखा है। जागते हुए, सोते हुए, दिन में, रात में, समने में हमारा रोम-रोम कृष्ण का नाम जपता रहा है। तुम्हारा संदेश कड़वी ककडी के समान लगता है। हमें उद्वव का निर्गुण संदेश कडवी ककडी की तरह लगता है। तुम हमारे लिए वो बिमारी, परेशानी ले आए हो (निर्गुण भ्रम की उपासना की बीमारी) जो हमने न कभी सुनी और न ही कभी देखी। तुम जो यह संदेश (योग संदेश) लाए हो वो जाकर उन लोगों को सोपों जिनका मन चचंल हो। (गंभीर प्रेम की अभिव्यक्ति, अंधा प्रेम, अटूट प्रेम) (उद्वव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने के लिए कहा है।)

प्रश्न 1.: ‘हरिल की लकड़ी’ से क्या अभिप्राय है? (किस प्रकार अपना प्रेम अभिव्यक्त करती है)

उत्तर: इस पंक्ति से गोपिकाएँ बताना चाहती है कि हरिल पक्षी के लिए जिस तरह एक लकड़ी का टुकड़ा जीवन की सहारा बन जाता है, उसी तरह उनके लिए भी हरि (कृष्ण) ही जीने के आधार है।

प्रश्न 2.: ‘जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।’ – अर्थ का स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा गोपिकाओं का कृष्ण के प्रति अंधा प्रेम अभिव्यक्त हुआ है। वे कहती हैं कि जागते समय, सोते समय, सपने में, दिन में, रात में उनका रोम-रोम कृष्ण का नाम जपता है। उनका मन कृष्ण मे ही लीन रहता है। जिस तरह हरिल पक्षी जीवन के लिए लकड़ी का सहारा लेता है उसी प्रकार हमारा सहारा कृष्ण का नाम है।

प्रश्न 3.: ‘सुनत जोग लागत है ऐसों, ज्यौं करूई ककरी’ – आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा गापिकाऐं कहती हैं कि कृष्ण का भेजा संदेश उन्हे कडवी ककड़ी के समान लगता है। निर्गुण ब्रहम की उपासना उन्हें नहीं भाती। योग की बातें अच्छी नहीं लगती।

(4)

हरि है राजनीति……………………………………………….जाहिं सताए।।

अर्थ – इन पंक्तियों में गोपिकाएँ कहती हैं कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। हमारे पास समाचार तो भेजे पर उद्वव के माध्यम से। झूठ और छल कपट करने भेजा है।

पहले से ही चालाक थे, मोह से लिपटे थे क्योंकि उन्होंने राजनीति पढ़ ली है तो बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ लीए है और होशियार हो गए है। (क्रोध की भावना झलक रही है) अब वह बुद्धिमान हो गए हैं इसलिए उन्होने हमारे लिए योग का संदेश भेजा है।

पहले के लोग अच्छे और परोपकारी थे। तुम (उद्वव) बहुत महान, बड़े हो तब भी तुम किसी के कहने पर उनका संदेश सुनाने चले आए।

चलते समय जो वह हमारे मनों को चुरा कर ले गए थे वो वापिस चाहिए। वह स्वंय अनीति क्यों करते हैं। जो दूसरों की अनीतियों (बुरे कर्मों) को छुडवाते हैं, वो खुद क्यों अनीति करते हैं (मनों को चुरा लिया)।

यदि वह स्वयं राजा है, तो उन्हें वो काम करना चाहिए जो प्रजा को नहीं सताए। गोपियों के मन को दुखी कर और निर्गुण धर्म की उपासना करके वह अच्छा नहीं कर रहें।

प्रश्न 1.: ‘हरि हैं राजनीति पढ़ी आए’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा गापिकाएँ कहती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति अपना ली है और बढ़े-बढ़े ग्रंथ पढ़लिए हैं क्योंकि उन्होने किसी और के द्वारा संदेश भेजा है।

प्रश्न 2.: ‘इक अति………………………………..ग्रंथ पढ़ाए’ – का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा गोपिकाएँ कहना चाहती है कि वह पहले ही चालाकी और मोह से लिपटे हुए थे पर अब उन्होने बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लिए है और राजनीति करना बखूबी जानते है।

प्रश्न 3.: ‘अब अपनै…………….हुवे चुराऐ। ऐसा क्यो कहा?

उत्तर: गोपिकाओं ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कृष्ण अब वह (कृष्ण) अनीति कर रहे है। जिन मनों को वह चलते समय साथ ले गए थे वे अब वापिस मांग रही हैं।

प्रश्न 4.: गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्वव को उलहाने दिए हैं?

उत्तर: गोपियों ने उद्वव को कहा है कि तुमने कभी प्रीति रूपी नदी में पैर नही धोए और प्रेम का स्पर्श ही नहीं लिया। तुम तो कृष्ण के सौंदर्य पर भी मोहित नहीं हुए, कैसे व्यक्ति हो तुम, तुम जैसे कमल के पत्ते की तरह जल में होते हुए भी इसमें डूबे हुए नहीं हो, वैसे ही तुम कृष्ण के प्रेम और स्नेह से वंचित हो।

प्रश्न 5.: उद्वव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियो की विरहग्नि में घी का काम कैसे किया?

उत्तर: उद्वव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया क्योंकि उनको कृष्ण से बिछडने का दुख था और वह कृष्ण से मिल कर अपने दिल की बाते कहना चाहती थी और कृष्ण का संदेश सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ।

प्रश्न 6.: ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?

उत्तर: जब गोपियों ने कृष्ण से प्रेम करके अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन किया है तो अब षर्म और दया किस बात की। अब वो कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को छुपाना भी नहीं चाहती हैं क्योंकि उनका रोम-रोम कृष्णमय हो गया है तो वे छुपाए भी तो कैसे।

प्रश्न 7.: प्रस्तुत पदो के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।

उत्तर: प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियाँ योग-साधना को कड़वी-ककड़ी मानती थी क्योंकि वे केवल प्रेम के मार्ग को जनती थी। उसका अनुभव किया हुआ था। इसलिए वे ज्ञान का मार्ग (उद्वव का बताया हुआ मार्ग) को नहीं अपनाना चाहती थी।

प्रश्न 8.: गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?

उत्तर: गोंपियों के अनुसार कृष्ण ने राजनीति छल-कपट अपना लिया है क्योंकि – उन्होने अब प्रेम का नहीं ज्ञान का पाठ पढ़ लिया है। अव उन्हें योग का ध्यान हो गया है।

इसलिए वे चाहती है कि जो मन वे साथ ले गए थे वो वापिस दें। उनके अनुकूल राजा का धर्म प्रजा को खुश रखना है न की उन्हें सताना। निर्गुण धर्म की उपासना क रवह अच्छा नहीं कर रहे।

प्रश्न 9.: संकलित पदो को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमर गीत की मुख्य विशेषताए बताइए।

उत्तर: गोपियों को निर्गुण-धर्म का संदेश भाता नहीं है तो वे भवरे को सम्बोधित करते हुए उद्वव को व्यंगयवाणो से आहत करती है और कृष्ण के प्रेम में अपने हालातों का वर्णन करती है। हिंदी साहित्य में इस परम्परा को ‘भ्रमर गीत’ से जाना जाता है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताए है-

1. अन्योक्ति का प्रयोग

2. प्रेम की ज्ञान पर विजय दर्शाती है

3. वाक् चातुर्य-गापियाँ वाक् चातुर्य बहुत ही व्यंग्य तरीके से कहा है।

4. गोपियाँ अपने संदेश मे सफल होती है।

5. निराकार पर सुखकार की जीत।

प्रश्न 10.: गोपियों ने उद्वव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।

उत्तर: गोपियाँ ईश्वर के साक्षात रूप को मानती थी और उन्हें उनका निराकार रूप नहीं चाहिए था और सकार रूप में उन्हें आकर्षण दिखाई देता था, अभिव्यक्ति थी जो कि निराकार में नहीं है।

प्रश्न 11.: उद्वव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?

उत्तर: गोपियों के पास प्रेम की शक्ति थी और प्रेम वह शक्ति है जो शक्ति किसी पर भी विजय प्राप्त कर सकती है। उनका कृष्ण के प्रति अटूट और अंधा प्रेम था। कृष्ण उनके रोम-रोम में बसे हुए थे।

प्रश्न 11.: गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए है? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: गोपिकाओं के अनुकूल कृष्ण ने उन्हे पहले प्रेम का मार्ग दिखाया और अब राजनीति अपना रहे है। उन्होने छल, कपट और झूठ का रास्ता अपना लिया है। राजनीति में हर व्यक्ति अपनी बातों को श्रेष्ठ समझता है। कृष्ण ने उनके मनों को चुराकर राजनीति की है।

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