आंखों में जलन, सींने में तूफान सा क्यों है ?
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है ?
आप सभी से में ये पूछना चाहती हु की वह बच्चा क्यों रो रहा है?
वह बुदा व्यक्ति चुप क्यों है ?
वह किशोर क्यों क्रोधित हो रहा है?
वह व्यक्ति चिडा क्यों रहा है ?
वह औरत रो क्यों रही है ?
विवाह को धार्मिक अनुष्ठान मानने वाले देश में क्यों बढ़ रहे है तालाक , क्यों बढ़ रहे है वृद–आश्रम ? क्यों बढ़ रही है शिशु–शालाए ?
कोई नही बताता—-। स्वार्थ–वश सभी अनजान बने हुए है। में बताती हु परिवार की धुरी मानी जाने वाली औरत ने परिवार को नकार कर बहार जगह बना ली है। एक उच्च स्थान प्राप्त कर लिया है। आर्थिक स्थिति से मजबूत यह औरत आज पुरूष से कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है। सम्मान और गर्व ने उसके माथे को ऊँचा उठा लिया है । मुस्कुराते चेहरे यह बताते है की सब खुश है । पति भी , पुत्र भी और परिवार भी।
लेकिन ज़रा इनके हिरदय में झांक कर देखिये उसमे सिसकिया और पछतावे के अत्तिरिक्त कुछ नही मिलेगा । कभी उस माँ को देखा है जो दूध पीने वाले को आँचल से उठा कर बिस्तर पर लिटा दे। और वह बच्चा चीखे मारता रहे । रोते बच्चे को माँ की बोत्तल थमा कर आँचल संभालती माँ को देखा है।
बंद दरवाजे का टला खोलते हुए बच्चे को देखिये । जहाँ मुस्कुराती हुई माँ नही । खली सोच –सोच करता कर उसके इन्तिज़ार में होता है । टेबल पर सुबह का खाना बना देख कर उसकी भूख ही गायब हो जाती है ।सवेरे का बना खाना देख कर उसे आकर्षित नही करता । तरस गए है आज बच्चे इस सुगन्धित महक के लिए जो उन्हें खिंच कर तरफ़ ले आती थी। भूख के लिए टोनिक का काम करने वाले मसालों की सुगंध पता नही कहाँ चली गई। कहाँ गई वह मेरी माँ जिसके आँचल से आचार की खुशबू आती थी । मंहगे परफ्यूम भी हमें वह संतुष्टि नही दे पाते।
नन्हे नादाँ बच्चो से इस नौकरी ने उनसे उनकी माँ चीन ली है । थकी हुई शाम को घर में कदम रखने वाली माँ बच्चो को क्या दे पति है। उसका तन–मन दिन–भर की थकान से चूर हो रहा हो होता है । पता नही वह किस–किस के अशलील व्यंग्य सुनकर आई होती है। क्योकि अब शालीनता और सोम्यता तो कही नज़र नही आती है। औरत को निम्न दृष्टि से देखने वाला पुरूष जब उन्हें अपने साथ देखता है तो हीन भावना से ग्रसित होकर उल–जुलूल ताने कसने से बाज़ नही आता है। जब वह घर आती है तो बच्चो के उदास चेहरे उसे अन्दर तक हिला देते है।
परिवार के वृद हमेशा घबराए से हैरान से रहते है। क्योकि ना किसी को उनकी देख–भाल करने का समय है और न ही उनसे बात करने का । जिन बच्चो के लिए उन्होंने सम्पूर्ण जीवन लगा दिया , उनसे ही बोल सुनने को तरसते है। वृद आश्रमों की बदती हुई संख्या इस बात का परमं है की आज वह परिवार का उपेक्षित अंग बन गए है। कहते है की हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है। आज महिला स्वयं उसके साथ चल पड़ी है। परिसतिथिया बदल गई है। आज पुरूष उस संतुष्टि को प्राप्त नही कर पा रहा जो उसे अपनी सफलता पर प्राप्त होनी चाहिए। पत्नी के प्रति इर्ष्या का भाव बढता जा रहा है। प्यार और स्नेह , अपनापन और समान , द्वेष के भाव में बदल जाता है, परिणाम —-तालाक । रास्ते —अलग–अलग । टूट गया बंधन , टूट गए रिश्ते , बिखर गया परिवार —-बात गए बच्चे ।प्रक्रति ने औरत को बड़ा ही नाजुक , कोमल , सोम्य और सुंदर बनाया है। आज तरस गई है आँखे उस रूप–सौन्दर्य को देखने के लिए जो पहले होता था । सोलह–श्रृंगार से मंडित , आभुश्नो से सुसजित नारी को देखने के लिए । जिसकी चाल में झनक, जिसकी बात में खनक , जिसक भाव में लचीला –सौन्दर्य था। नौकरी के बहनेऔरत से उसकी ममता, प्यार , स्नेह, अपनापन , लज्जा , शील–सौन्दर्य मत चिनीये। कहते है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। सोच कर देखिये नौकरी करने से औरत ने क्या खोया क्या पाया है। मैं समझती हु की