” आओ कार चलाना सीखें ”

आज की इस भागम -भाग की जिंदगी में यदि किसी को निजी वाहन चलाना न आता हो ,तो वह हाथ -पैर होते हुए भी अपंग के समान हो जाता है |

कहीं जाना है ,कुछ कार्य करना है तो या तो घंटों बस के इंतजार में खड़े रहिए या ऑटो ,टैक्सी लेकर जाइ ए | चले तो जाइए पर आपकी जेब कब आपको पैदल चलने

के लिए कहने लगे ,यह विचारणीय है |

महिलओं को कार ,स्कूटर चलाते देखती तो अभिमान से गरदन अकड़ जाती ,कि महिलाएं कितनी समर्थ हैं ,कितनी आत्म निर्भर हैं किसी पर निर्भर नहीं ,किसी

का एहसान नहीं ,किसी के समय की बर्वादी नहीं | लेकिन ……जब अपनी ओर देखती तो अबला से भी निम्न स्तर पर पहुंच जाती | मैंने दृढ़ निश्चय किया कि मैं

ड्राइविंग सीखूंगी | इसमें पतिदेव ने पूर्ण सहयोग दिया क्योंकि वे रोज रोज की खिच -खिच से बचेगें ,जल्दी भी नहीँ उठना पड़ेगा ,मुझे काम पर भी नहीं छोड़ना पड़ेगा |

कुछ दिनों में ही पतिदेव का प्यार और सहन शक्ति उग्र रूप में परिणित हो गई | जब भी मुझे कार चलाना सिखाते उनके निर्देश बदलते जाते —गेयर चेंज करो ,

नीचे मत देखो ,एक्स लेटर पर प्रेशर मत डालो , सामने देखो ,मिरर में देखो , कुछ ही दिनों में मेरी हिम्मत जवाब दे गई | प्रतिदिन एक घंटा बहुत ही मशक्कत का

बीतता | कभी -कभी तो पति -पत्नी का वाक युद्ध अतल शांति की गहराईयों में डूब जाता या आँसुओं में बदल जाता  |

हजारों बच्चोँ को बोर्ड की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त करवा दी लेकिन स्वयं क क. ख . ग …..भी न सीख सकी |मन में

निराशा घर कर गई |इस के सीखने में अंग -अंग टूटने लगता |लगातार निर्देश सुनते -सुनते मस्तिश्क में हथौड़े पड़ने लगते ,बाहें और टांगे इस कद्र दर्द करते जैसे सारे

दिन मजदूरी की हो |आलम यह है कि स्टेरिंग पकड़ते ही दिल की धड़कनें इस कद्र बढ़ जाती कि धक् -धक् की आवाज कानों में गूंजने लगती | कभी -कभी तो यूँ

महसूस होता कि दिल मुह को ही आ जाएगा | सड़क पर यदि पैदल यात्री भी दिख जाता तो लगता कि कार अब उसी पर चढेगी |यदि बस या ट्रक दिख जाता तो

आखों के सामने अधेंरा छा जाता कि आज ही जीवन का अंतिम दिन हो जाएगा |सम्पूर्ण ताकत से स्टेयरिंग अपनी ओर खीचती ,घबराहट में एक्सलेटर दब जाता और

कार और तेज हो जाती |घबराहट में हाथ -पैर ऊपर कर लेती ,पूरी तरह सरेंडर कर देती तब ,उस्की स्पीड कम होती लेकिन दिशा ,कहीं की कहीं हो जाती |

सबने एलान कर दिया कि अब मैं कार चलाना नहीं सीख सकती | मुझे भी विश्वास हो गया कि दुनियां की कोई ताकत कार चलाना नहीं सिखा सकती

मन में कभी -कभी आता कि काश कार भी आकाश में चलती तो कोई एक्सीडेंट का डर नहीं रहता | घोर निराशा मन में घिर आई जिसमें अंधकार ही अंधकार था |

प्रकाश की कोई किरण न थी | अब हसरत से लोगों को गाडियां चलाते देखना ही मेरी नियति थी | हार कर बसों में टक्कर खाना मंजूर कर लिया |

एक दिन कक्षा में” निराश न होने पर ” विचार -विमर्श कर रही थी —-“हारिए न हिम्मत विसरिए न राम ” आज अभिव्यक्ति में वह जोश न था |

क्योंकि जिसका दिल पहले ही निराशा में डूबा हो वह भला क्या उपदेश देगा | मन में विद्रोह उपजा ,एक संकल्प किया कि कार सीख कर ही मानेगें |घर में एलान कर दिया

कि अब नए सिरे से कार सीखेगें | किसी ने भी हामी नहीं भरी | लोग मुसकरा कर रह गए | कोई टिप्पणी नहीं की | इसने होम में घी का काम किया ,इससे इच्छा

-शक्ति और प्रबल हो गई | इस बार अपने आप ही सब कुछ करने की ठानी |एक ड्राइविंग स्कूल का सहारा लिया | ईश्वर की विशेष आराधना की | मन  को पूर्ण

होशोहवास में मजबूत किया ,अपने संकल्प को दोहराया | कार की पूजा की ,नारियल तोडा और श्री गणेश किया | दिल फिर ऊपर को आने लगा |धड़कनें शीर्ष पर

पहुँचने लगीं | हाथ -पैर काँपने लगे | मैंने कुछ देर आँखे बंद कर अपने पर काबू किया और इग्निशियन में चाबी घुमा दी |खर्र -खर्र की आवाज के साथ कार स्टार्ट

हुई और एक झटके के साथ दो कदम आगे बढ़ कर बंद हो गई |मैंने फिर मनुहार की ,हाथ -पैरों पर नियंत्रण किया ,उनमें ताल -मेल बैठाया | कार चल पड़ी |

उस्की गति के साथ ह्रदय की गति ने ताल -मेल बैठाया और दस दिन के कठिन परिश्रम ,द्रढ -संकल्प ने अपना रंग दिखाया | कार चलने लगी | अब किसी को सामने

देख कर डर नहीं लगता |ट्रक और बसें यमदूत नहीं लगते |

अब तो कार का हर पुर्जा शरीर का अंग  बन गया है | जरा सी आहट ही बता देती है कि मेरी प्यारी कार को कहाँ तकलीफ है |अपनी तकलीफ की

तरह इसकी तकलीफ भी दूर करने का प्रयत्न करती हूँ क्योंकि यही मेरा साथ निभाती है ,यही सच्ची साथी है |

आज मेरे मन में एक नया विश्वास पैदा होता है कि दृढ संकल्प और मेहनत से क्या नही हो सकता !

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